यूॅंही मन के आकाश में…..
यूँही कभी मन के आकाश में
उड़ते चले आते हे यादो के पंछी …..
वो छोटी सी आँखे ,जो कभी तितली देख
हँस दिया करती थी …..
वो नाजुक सी उंगलीया जो ….
फूलों की पत्तीयो को गिनती
और सिहर उठती थी
शायद ,आज उसे खो दिया …..
और फिर हँसकऱ दूसरे
फूल की पत्तीयो को गिनती ,
आशा की नई वो उड़ाने,
जो मनचाही बातें बुनती…
और …..नए सपनो के पीछे भागता हुआ मन ,
हाथ की लकिरो पर तेरा
नाम लिखने की चाहत…
आज देखती हूं वो रेखाए
ओर गहरी हुई सी ,
ये गहराई प्यार की हे या गर्दीश की !
-मनीषा’जोबन