यूँ ही क्यूँ – बस तुम याद आ गयी
यूँ ही क्यूँ – बस तुम याद आ गयी
जब कभी – सर्दी में बारिश हुई
कुछ बूंदों की फुहार ने
ज्यूँ ही चेहरे को छुआ
ना जाने क्यूँ फिर तुम याद आ गयी
खनकती चूड़ियों का संगीत
तुम्हारे परान्दियों से उड़ती
मोगरे की महक
ना जाने क्यूँ फिर याद आ गयी
कहाँ कहाँ ना भटका ये मन
ढूँढता तुझे
और आज सुबह – सुबह
मेरी खिड़की के बाहर
पत्ते में यूँ ही उलझी
बारिश की उस बूँद में
तेरा अक्श उभर आया
और ना जाने फिर
यूँ ही क्यूँ
बस तुम याद आ गयी