युवा शक्ति
चल, उठ तुझे इंकलाब लाना है ।
मुआशरे के लहू में उफान लाना है ।
फकत काम नहीं तेरा यूं जिंदगी जीना ।
तुझे तो चीरकर रेगिस्तान का सीना जमीं पर नीर लाना है ।।
बापू और भगत की इस धरती पर,
एक नया अवतार लाना है ।
रूप हो आम इंसान का ,
पर दिल में हर इंसान के भगवान लाना है ।।
तोड़ कर मजहब की बेड़िया,
सबको एक साथ लाना है ।
औरों की बेटियों की इज्जत भी है अपना ही गहना,
सबको यह ज्ञान समझाना है ।।
अब उठ चल साथ मेरे ,
तुझे फिर से एक सुनहरा कल आना है ।
जिसमें साथ रहे इंसा सारे,
ऐसे मुस्तकबिल का एक नया हिंदुस्तान लाना है ।।
और जो बैठ गया है तू यूं थक कर,
सोच ये आग और कितनों के सीने में धधकाना है ।
उठ, मत रुक, थोड़ा कम कर आराम ।
तुझे तो तोड़ कर अभी आसमां से जमीं पर चाँद लाना है ।।
✍✍✍ मोहम्मद शारिक अमीन