युधुष्ठिर -अभिमन्यु संवाद
यह कविता मेरे द्वारा लिखी जा रही पुस्तक” वीरगति”(अभिमन्यु की गाथा) का अंश विशेष है।
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।। युधुष्ठिर -अभिमन्यु संवाद।।
युधिष्ठिर,भीम, सहदेव, नकुल
सब यही सोच रहे हैं मौन।
गोविन्द पार्थ जब यहां नहीं ,
दुर्भेद्य चक्रव्यूह भेदेगा कौन।
कहते धर्मराज “हे सत्यिकी!
आज दुर्योधन विजयी होगा।
धर्म की ध्वजा झुक जायेगी
और अधर्म ध्वजा लहराएगा।
अब दूजा ना कोई उपाय है
हार मुंह की खाने को।
है कौन वीर ऐसा यहां
चक्रव्यूह की त्रास मिटा दे जो।
क्या समय स्यंदन का पहिया,
फिर घूम वहीं रह जाएगा।
दुर्योधन का संगी बनकर ,
फिर बंदी मुझे बनाएगा।
इतने में सहसा एक वीर ,
रथ लिए निकल आया आगे।
रोहित ही बोला “महाराज
ऐसा न कहिए मेरे आगे।
हे महाराज!दीजिए आदेश
करिए लौट शिविर विश्राम।
मैं आज बन दिखलाऊंगा ,
अयोध्या पति सा धनुर्धारी अविराम।
जिस तरह दो घड़ी के भीतर
था मिला धूल में खर-दूषण।
बस उसी तरह आज संध्या ,
तक यहां पड़ा मिलेगा दुर्योधन।
या फिर विराट युद्ध जैसी
एक नई कथा दुहराऊं मैं।
जिस तरह तात थे वहां किए,
आज वही समर दिखलाऊं मैं।
मन में रखिए हे नृप धीर,
ऐसे न शीघ्र होइए अधीर।
मेरे रहते आप तक पहुंचे ,
जन्मा है ऐसा कौन वीर।
– अनिमेष कुमार सोनू