युद्ध
कहाँ सब युद्ध
लड़े जाते रणक्षेत्र में—
कुछ तो चलते
भीतर मन के ,
अपने से-अपनों से
चुपचाप बिना आवाज़….
इतिहास गवाह है,
अब तक लड़े गए
हर युद्ध में
धरा हुई लहूलुहान…
और मिटा कई बार
उसका नामोनिशान….
लेकिन इसने भी
कहाँ हार मानी है
जीतने की ज़िद ही
बस ठानी है…
कोख से इसकी
नई कोंपल फूटी है
मौत को हराकर
हर बार ही
ज़िन्दगी जीती है….