युद्ध हमें लड़ना होगा
सिंधु नदी के जल से तुझको पाला-पोसा, बड़ा किया
सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र बनाकर था सम्मान दिया
लेकिन अपनी फितरत से भी बाज भला कब आता तू
छेद उसी में करता रहता, जिस पत्तल में खाता तू
तू क्या जाने नफरत पर है चाहत का अधिकार बड़ा
हमने छोटा भाई समझा, तू निकला गद्दार बड़ा
पैदा होते ही भारत से गद्दारी पर उतर गया
कश्यप ऋषि की धरती पर तू नागफनी सा पसर गया
भूल गया सन् पैंसठ में माटी का स्वाद चखाया था
परमवीर अब्दुल हमीद ने पैंटन टैंक उड़ाया था
इकहत्तर में तुझे तेरी औकात दिखाकर तोड़ दिया
झुका हुआ सर देख नियाज़ी का जो हमने छोड़ दिया
तूने इसको भारत की कमजोरी कैसे मान लिया ?
अरे अभागे ! तूने तो कुल्हाड़ी खुद पर तान लिया
करगिल में मुँह की खाया था, यह भी तुझको याद नहीं ?
अभी सर्जिकल स्ट्राइक में मारा था जो, याद नहीं ??
सह कर कष्ट अपार जिन्होंने अम्न का था पैगाम दिया
अरे अधर्मी ! तूने उन्हीं मुहम्मद को बदनाम किया
शुक्र मना, है शिवशंकर का नेत्र तीसरा बन्द अभी
भारत में हैं छिपे हुए कुछ मानसिंह, जयचन्द अभी
पहले घर के गद्दारों को खींच खींच टपकाना है
फिर तेरे लाहौर-कराची में जन-गण-मन गाना है
काली का खप्पर जागेगा, रक्त बहेगा गली गली
दुश्मन की छाती पर चढ़कर नाचेंगे बजरंग बली
फिर गूँजेगा घर-घर, हर हर महादेव अब घाटी में
चन्दन को सम्मान मिलेगा केसर की परिपाटी में
सीमा की मर्यादा को अब पार हमें करना होगा
शान्ति ‘असीम’ चाहिए तो फिर युद्ध हमें लड़ना होगा
© शैलेन्द्र ‘असीम’