युद्ध का फलसफा
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रौशनी थी चमकती हुई।
वह चाहता था
और ज्यादा रौशनी।
अंधेरा था डरा हुआ।
वह चाहता था
उसे और डराना।
तृष्णा थी उसके पास।
वह तृष्णा पैदा करना चाहता था
अपने व्यक्तित्व में।
उस मानव में
दानवता तो थी
किन्तु,
वह चाहता था बन जाना
दानव ही।
उसके पास
राजनीति की रणनीति थी प्रखर ।
उस प्रखरता में चाहता था भरना
गर्व।
खनिज और रत्न
अंटे अंटता नहीं था
उसके दुर्ग में।
वह चाहता था
अधिक खनिज और रत्न।
और दुर्ग भी।
हरम में उसके
सौंदर्य और
चित्रवत रमणियाँ
खजुराहो के
थे बिखरे पड़े।
किन्तु,
वह चाहता था जीना
खजुराहो खुद।
इसलिए, वस्त्र हरण
उसका अधिकार था।
काश!
युद्ध का फलसफा
शांति के दामन में
हो जाता तिरोहित।
बना जाता
योद्धा का हत्यारा नहीं
बल्कि पुरोहित।
यह युद्ध कभी बूढ़ा नहीं होता।
बड़ा होता जाता है
पीढ़ी दर पीढ़ी।
युग दर युग
लाता रहता है
विध्वंस और मृत्यु की खबरें।
हरदिन।
अशुभता।
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