युग बोध करो
युग बोध करो!
सुनो!
हक़ीक़त को समझो!
युगबोध करो!
अतीत की बादशाहत
कायम नहीं है वर्तमान में!
कल,
आज भी अतीत हो जाएगा!
अतीत भी इतिहास में दफन है
ये आज भी हो जाएगा !
मूँछों पर ताव दो
परंतु
औरों के भी मूँछें निकलती हैं!
मनुष्य की बायलोजी पढ़ो!
पाग को पंखों की नहीं,
पहचान की आवश्यकता है!
तलवार को रख लो म्यान में
जगत को नफरत नहीं प्रेम चाहिए!
शेरों की दहाड़ पिंजरों में सुनाई देती है!
सिमट गए हैं जंगल,
चढ़ गई है भेंट अहंकार की,
कुदरती सुंदरता संसार की!
आजकल गधे और घोड़े
पहचान लिए जाते हैं!
आम आदमी आजाद हो गया है!
बयां कर सकता है हकीकत
गर हिम्मत है तनिक!
और सुनो!
हिम्मत तो बच्चे बच्चे में है
तानाशाही अब किताबों में ही बची है!
अथवा राजशाही में!
भारत लोकतंत्र है!
लोकतंत्र का मतलब समझो!
वरना…..
अहंकार की आग में जल जाओगे
अकेले ही!
जाति धर्म की बेड़ियों को
काटने की बजाय
तुम मतभेद की खाई चौड़ी कर रहे हो!
तनिक विचारो
पोंगेपन का लबादा उतारो!
और देखो!
समझो भी! कि समय बदल गया है अब!
जमाने ने करवट भी बदल ली है!
भ्रम और भ्रांतियां टूट चुकी हैं!
शिक्षा ने जीवन रोशन कर दिए हैं!
तो आओ!
कदम से कदम मिलाकर चलें!
टांग खींचो मत,हाथ बढ़ाओ!
अमृत महोत्सव है,
मौज जश्न मनाओ!
विमला महरिया “मौज”