गंगा मां कहती है
युगों -युगों से बह रही है
युगों- युगों तक यह बहेगी
‘मेरी शुचिता बनाकर रखो’
युग -युग तक यही कहेगी।
गंगा हम सबकी मां है
निर्मल जल उसका तन है
‘जल ही जीवन हमारा’
यही हरदम पुत्रों से कहेगी।
बैशाख शुक्ल सप्तमी तिथि को
गंगा का अवतरण हुआ था
ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को
गंगोत्री से चल सागर से मिली थी।
कूड़े -करकट मत डालो मुझमें
गंदगियां भी मत डालो मुझमें
गहराई भी मेरी जल्द कमेगी
पीने योग्य पानी भी नहीं बचेगी।
भागीरथी के सद प्रयासों से
उनके पूर्वजों का उद्धार हुआ
महादेव – कृपा से वेग कमा था
जन -जन का कल्याण हुआ था।
मेरे जल से होती है पूजा
देवों के मस्तक पर चढ़ती है
मरने वालों को मुक्ति मिलती
नहाने से तन- मन चंगा होयेगी।
युगों -युगों से बह रही है
युगों -युगों तक यह बहेगी
‘मेरी शुचिता बनाकर रखो’
युग -युग तक यही कहेगी।
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स्वरचित :घनश्याम पोद्दार
मुंगेर