युगनिर्माता
विकृतियों व रुढियों से लड़ना है हमें,
फिर से नया समाज गढ़ना है हमें।
स्वीकारेंगे नहीं इन मूढ़ मान्यता को,
परखेंगे विवेक से हर एक वास्तविकता को।
चेतना की नई अलख जगाएंगे,
समाज को नई संजीवनी पिलाएंगे।
कुप्रथाओं को त्यागेगा सारा जहां,
नई रोशनी देंगे हर तिमिर को यहां।
नवसृजन के निमित्त कदम बढ़ाएंगे,
युगनिर्माता की उपाधि से स्वयं को सजाएंगे ।
।।रुचि दूबे।।