यार हमको भी मुहब्बत हो गई।
दर्द सहने की हां’ आदत हो गई।
यार हमको भी मुहब्बत हो गई।।
खुश हुई जनता तेरे फरमान से।
औ सियासत की सियासत हो गई।।
अब जहाँ कहने लगा शायर मुझे।
आपकी नजरे इनायत हो गई।।
हाथ माँ का उठ गया आशीष को।
जिंदगी मेरी सलामत हो गई।।
देखकर तुझको गली में आज फिर।
था ये दिल बेचैन राहत हो गई।।
दोस्तों का भी करो कुछ ध्यान अब।
खूब दुश्मन की हिमायत हो गई।।
प्रदीप कुमार