यार पुराने जब मिलते हैं
यार पुराने जब मिलते हैं
फूल दिलों में तब खिलते हैं
आँख खुलेना नींद से जब तक
ख्वाब सुहाने ही पलते हैं
मुमकिन हो गर बापस होना
लौट के बचपन मे चलते है
पतझड़ तो आती जाती पर
सूखे तरुबर कब फलते हैं
दूर हुये जो हमसे बरबस
आज तलक दिल को खलते हैं
भूल गये वो हमको “योगी,”
आतिशे हिज़्र में हम जलते हैं