सूनापन
अपनी ही बातो के प्रपंचो में खो रहा हूँ,
मैं दिल में खुद से भी काफी दूर हो रहा हूँ।
न जाने क्यूं अकेला इतना सुहाता है,
भीड़ को देखकर तो अब जी मचल जाता है॥
यारो की महफिलो में भी, तन्हा खुद को पाता हूँ,
बचपन की गली में भी मुस्कुरा नही पाता हूँ।
ये किसका असर है जो मन पर छाया है,
वरना! लक्की, अकेला कभी नजर नही आया है॥
आपका अपना
लक्की सिंह चौहान
बनेड़ा(राजपुर)