याद
याद आया वो बीता ज़माना
कभी ठिठोली
कभी आँख मिचौली
कभी चिचौरी
कभी चौरी
कभी मस्ती
खुशियों की बस्ती
थी एक हस्ती
ढूँढते हैं लोरी
प्यार की डोरी
वो अपना रूठना
उनका मनाना
आँचल की सुगंध
मसाला बाटना
धनिया की चटनी
हाथों से समेटना
चूडि़यों की खन खन
खुशियाँ जन्मदिन
याद आती है मां
होसले बुलंद
आंसू की बूंदें
प्रेम भरी भावनाएं
दूर हटाती बलाएँ
न भुले स्मृतियाँ
उत्साह की संभावनाएं
उत्सव सा हर दिन
धिन धिना धिन धिन
हैं ये सब आशीष
माँ का हाथ शीश
भूलाये भूला
नहीं जा सकता
वो ज़माना
आज माँ का ज़माना
फिर याद आया
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल