याद है मुझे वो दिन
आज भी याद है मुझे वो दिन,
जब पहली दफा देखा था मैंने तुम्हें।
कैसे बतलाऊं कैसा महसूस किया था मैंने,
कैसे बतलाऊं क्या खुशियां दीं थीं मुझे तुमने।
तुम्हारे दो नन्हें हाथ, दो नन्हें से पांव,
नन्हें से तुम बिल्कुल सफेद चांद जैसे।
जैसे कि मानों सफेद रुई के हो नन्हें से खिलौने,
नज़र ठहर सी गई थी मानो तुम पर ओ सलोने।
कांपते हाथों से थामा था मैंने तुम्हें,
तुम्हारे रोने की आवाज सुनकर,
मैं भरी आंखों में भी खिलखिला पड़ी थी,
जैसे मानो मेरी जिंदगी मुस्कुरा रही थी।
अनगिनत अनछुए एहसासों ने एक साथ छुआ मुझे,
जब भरी आंखों और कांपते हाथों से थामा था तुम्हें।
थे जैसे तुम तपती धूप की ठंड भरी छांव,
थे जैसे तुम कड़कती ठंड की गर्माहट भरी अलाव।
ना कोई दाग़, ना काला टीका था तुमपे वैसे,
नज़रों से हीं देखकर नज़र उतार दी मैंने जैसे।
थरथराते होंठों से चूमा था माथा मैंने तुम्हारा,
लगाकर सीने से दी थी दुआंयें ढेर सारा।
तुम्हारी किलकारी की आवाज सुनकर,
थम सी गई थी मैं, ठहर सी गई थी मैं।
देखकर मैं तुम्हें होंठों से मुस्कुरा रही थी,
अनगिनत ख्वाब मेरा आंगन सज़ा रही थी।
शायद नहीं समझ पाओ तुम उस एहसास को,
शायद मैं समझा नहीं पाऊं उस एहसास को।
क्या और क्यों महसूस किया था मैंने,
किस तरह का एहसास दिया था तुमने।
लेकिन, एक दिन ऐसा आयेगा जब तुम भी महसूस करोगे,
तुम, तुम्हारी परछाईं को जब तुम अपनी गोद में लोगे।