याद हैं वो दिन
याद हैं वो दिन,जब पत्र लिखा करते थे
डाकिया के आने का, इंतजार किया करते थे
याद हैं वो दिन,जब बैलगाड़ी में सफर करते थे
रेलगाड़ी में इंजन,कोयले के हुआ करते थे
याद हैं वो दिन,जब बिबाह बच्चों के हुआ करते थे
भांवर में झगड़ते, खिलोने के लिए मचलते थे
याद हैं वो दिन,जब घर मिट्टी के हुआ करते थे
बड़े ही प्यार से, परिवार रहा करते थे
याद हैं वो दिन,जब चिमनी लालटेन जला करते थे
चिराग जलाते हुए,सबके भले की दुआ करते थे
याद हैं वो दिन,जब लोग बात बाले हुआ करते थे
अपनी जुबान पर,सब कुर्बान किया करते थे
याद हैं वो दिन,जब घूंघट हुआ करते थे
लोग बड़े छोटे का,आदर किया करते थे
याद हैं वो दिन,जब घरों में चक्की चला करतीं थीं
लोक गीतों की धुनें,हर घर में हुआ करतीं थीं
बहुत सी अच्छी चीजें,समय ने बदल डालीं
बहुत सी बुराईयां, आदतें बदल डालीं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी