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18 Feb 2024 · 1 min read

याद – दीपक नीलपदम्

बहुत दिनन के, बाद आयी हमका,

मोरे पिहरवा की, याद रे ॥1॥

चाँदी जैसे खेतवा में, सोना जैसन गेहूँ बाली,

तपत दुपहरिया में आस रे ॥2॥

अँगना के लीपन में, तुलसी तले दीया,

फुसवा के छत की, बरसात रे ॥3॥

कुइयाँ पे पानी, भरत सहेलियन से,

करते थे खट्टी-मीठी, बात रे ॥4॥

घर के बरौठे में, डेरा डाले बापू की,

हर दिन आवत है, याद रे ॥5॥

माई जब बिदा कीन्ही, फाड़ के करेजवा,

रोये थे बुक्का हम, फाड़ के ॥6॥

छुट गएल नैहर, छुट गएल गाँव मोरा,

अंखियन में धुंधली-बासी, फाँस रे ॥7॥

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

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