याद आते हो सदा तुम, फ़र्क क्या दिन रात से।
गज़ल
2122……..2122…….2122……..212
याद आते हो सदा तुम, फ़र्क क्या दिन रात से।
ये बिरह की अग्नि अब बुझती नहीं बरसात से।
खूबसूरत वादियों मे हाथ थामा आपका,
दूर कैसे जा सकेंगे उन हँसी लम्हात से।
बात मरहम, बात देती दर्द, करती घाव भी,
घोर संकट भी मिटा सकती है दुनियां बात से।
दुश्मनों के वार से बचना है मुमकिन भी मगर,
बच के रहिए जिंदगी में अपनों के आघात से।
कर्म पथ पर अग्रसर हो, जिंदगी की ज़ंग में,
हार मत मानो सदा लड़ते रहो हालात से।
इश्क है तो, रूठ जाना मान जाना ठीक है,
भूलकर भी खेलना मत प्यार में जज़्बात से।
प्रेम से प्रेमी हुए हैं सबके, दिल में प्रेम हो,
प्रेम बँध सकता नहीं है धर्म या फिर जात से।
……..✍️प्रेमी