याद आए तुम
आज काफी दिनों बाद
याद आए तुम
व्यस्तताओं के भंवर में उलझा हुआ
न जाने कब से
कभी ख्याल ही नहीं आया तुम्हारा
आज सच में याद आए तुम
ख्यालों के समंदर में डूब कर
तुम्हारे साथ बीते वक्त के अवशेष को
पागलों की तरह ढूंढना
सालो पुराने भेजे हुए तुम्हारे मैसेज को
दुबारा पढ़ना
तुम्हें देखने के लिए अपनी आंखे मूंदना
एक अलग ही व्याकुलता और बेचैनी
बिल्कुल ही अजीब है
फोनबुक में नंबर आज भी है तुम्हारा
पर तुम्हें जिंदा करूं खुद में
न मेरा वक्त मुझे करने दे रहा
और न ही मेरे दायित्व
मन यायावर हो चला है
और तुम कस्तूरी हो गई हो
मेरे मृग रूपी हृदय का
जो स्थापित तो हमेशा रहेगा
पर ताउम्र तुम्हे ढूंढता रहूंगा।
अभिषेक राजहंस