यादों के साये…
यादों के साये जब दिल पें पडते है ,
बेकाबु अरमान दिल कें तडपते है …
आहिस्ता सांज सरकती जाती उसपार ,
इसपार दिलको तहस नेहस करते है …
बेगुनाह दिल चल पडा था मंजील की और
फिरसे वो रास्ते भुलेबिसरे आहे भरते है…
चांदणी रात चुपके से आने को है पर
ऐ नादान दिल क्या हुआँ ,क्यूँ डरते है …
अब ना आस थी ना दिये जलाये कही ,
फिरभी वो लौ बुझा कर खुद मरते है…
ये चौखट आज गिली हुई है यादों से,
बारीश की बुंदे आँखोसे सिमेटते है …
यादों के साये जब दिल पें पडते है ,
बेकाबु अरमान दिल कें तडपते है …