यादों के बीज बिखेर कर, यूँ तेरा बिन कहे जाना,
यादों के बीज बिखेर कर, यूँ तेरा बिन कहे जाना,
कल्पनाओं के जंगल में फिर, मेरा खुद को बिखराना।
निगाहों को मेरी, अपनी ख्वाहिशों से उलझाना,
चाहतों का तस्वीर बन फिर, ठंडी फर्श से टकराना।
अपनी बातों के सिलसिले से, मेरी खामोशी को भर जाना,
तेरी आवाज की तलाश में फिर, मेरा निःशब्दिता को अपनाना।
पास होकर एहसासों के, सोये आस को जगाना,
मृगतृष्णा की तरह फिर, रेगिस्तान में मीलों तक भटकाना।
बेगानों की दुनिया में, अपनेपन का सबब बन जाना,
महफिलों में अपनों के फिर, मेरा तन्हाइयों संग आशिकाना।
तकदीर की लकीरों का यूँ, मोहब्बत को जीता कर हराना,
लम्हों का वो साथ और फिर, मिल कर भी ना मिल पाना।
इजहारों का अब बस, सितारों को फुर्सत में शिकवे बताना,
जन्मों के उस पार यूँ फिर, मिलने की तुमसे राह बनाना।