यादों की साजिशें
कतरा कतरा कर वो यादें डराती हैं।
जब भी ये हवाऐं वेग में गाती हैं,
वो हंसी झंकार सी गूँज जाती है।
कभी कभी ये हवाऐं ठहर सी जाती हैं,
सारी की सारी हलचल साथ ले जाती है।
यादों के धागों में गाँठ बंध जाती हैं।
फ़िर इक दिन पत्तों की सरसराहट नींद से जगाती है,
और यादों की साजिशें रंग लाती हैं।
कभी कभी ये हवाएँ वैरागी भी बन जाती हैं,
हर तरफ़ मौन का आवरण फैलाती हैं।
साँसों की गति धीमी हो जाती है,
और तुम्हारे चले जाने का संदेशा सुनाती हैं।
बस उसी क्षण सूरज की किरणें समुंदर से टकराती हैं,
और तेरी यादों के साग़र में हलचल सी मच जाती है।