“यादों की शमा”
खट्टी-मीठी-खारी यादों के बीच बचपन की यादें अक्सर बेहद खूबसूरत और हसीन होती हैं। उन यादों में रंग-बिरंगी तितलियाँ, दादी-नानी की कहानियाँ, चूहा, बिल्ली, चिड़िया, साँप, मोर, शेर, हिरण, गुब्बारे, पतंग, उड़नपरी, मेला, सरकस, जोकर, झील, नदी, तालाब, आशियाने से लेकर इन्द्रधनुष तक सब कुछ होता है। आगे चलकर यही यादें हमारे जीवन को एक नई दिशा देती है, चिन्तन को आकार देती है और प्रेम को विस्तार देती है। मसलन :
मेले का नाम सुनकर ही यारों
जी उठता है बचपन,
सिनेमा सर्कस नाच और झूले
याद आते अपनापन।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक