–यादों की किताब
यादों की उस किताब में,
फिर से वो पन्ना खुल गया,
जिसमें.. कैसा पराया था वो?
जिसमेंअपनापन का एहसास है,
दूरियों में भी पास का आभास है,
लगता आज भी खास है,
सपना था यह कोई बात है,
बंद हो जाती किताब,
फिर क्यों खुल जाती वो याद?
लिखा था मैंने जिसे…
वात्सल्य की लिखाई,
स्नेह की स्याही से,
सम्भाल रखा उसे जैसे
कीमती कमाई से।
– सीमा गुप्ता