यादे
उस पल जब रह गयी थी बिल्कुल अकेली
चकनाचूर होकर मेरे मन के भाव
बिख़र गयी थी मैं लगता था
क्या सिमट पाऊंगी मैं कभी…?
वो खुशबू सी एहसासों के अतीत सी
वो यादें मेरे मन के किसी कोने में मानो
तुझमें समां गयीं हैं न जाने क्यों…
तेरे पास आते ही तुझे छूते ही ज़िंदा
सी प्रतीत हो जाती हूँ मैं स्वयं में
और फिर से जुड़ने लगता है मुझ में
वापस मेरा यादों का वो क़तरा क़तरा …
पल पल जीना चाहती हूँ हर वो लम्हा
जिसमें मुझे मेरे होने का एहसास हो
मैं वापस जुड़ जाऊँ अपने अतीत से वर्तमान में
उन यादों की खुशबु की शीशी सी…
जिसमें खुशबुएँ भरीं थीं मनमोहक यादों की
जैसे मेरे ही रंग-बिरंगे सपनों की तरह
ज़िंदा हो हर एहसास मेरे मन का…
उसी खुशबु भरी शीशी की तरह
मैं अपने हर उस सपने को
सच करने की आस जो वर्षो से मन मे दबे से
जीना चाहती हूँ हर लम्हा अपने मन माफिक
जुड़कर हर क़तरे कतरे यादों भरे जीवन के…
महकना चाहती हूँ मैं भी पल पल,प्रतिपल
फ़िर से उस ख़ुशबू की तरह
बस उस खुशबु समान यादों की तरह
डॉ मंजु सैनी