यादें
फिसलती रेत नहीं,
है यह फिसलता हुआ लम्हा,
सिमटा जिसमें यादों का खजाना है।
पिरोया जिसे हमने पल – पल की मोतियों से,
बिठाया जिसे हमने पलकों पर,
गुनगुनाया जिसे हमने अधरों से,
सजाया जिसे हमने सपनों में,
आखिरी सफर के मुहाने पर खड़े हैं हम,
यादों का मंजर झलक दिखला रहा है,
और एक पल रुकने की गुहार लगा रहा है।
पर सांसों की उलटी गिनती,
दे रही है हमें आखिरी सलामी,
बस और एक पल की है हमारी कहानी।
तमाशबीनों का मजमा लगा हुआ है,
हमारी रुखसत का सामान सजा हुआ है।