यादें
काॅच की सी गुड़िया जिसकी बात कर रहा हूँ ।
बहुत सताती थी जिसको में याद कर रहा हूँ ।
वो भी क्या दिन थे, जब वो साथ रहा करती थी ।
हम सबका ध्यान वो अकेले रखा करती थी ।
मम्मी की गुड़िया पापा की राजकुमारी थी ।
मत पूछो हमसे हमको वो जान से प्यारी थी ।
लड़ती झगड़ती कभी हमसे रूठा करती थी . ।
पर अपनी मुस्कान से रौनक लाया करती थी ।
हर तीज त्योहार पर वो सुंदर रंगोली बनाती थी ।
सबसे ज्यादा खुश जब वो रक्षाबंधन मनाती थी ।
हम सोकर न उठ पाये वो थाली सजा लाती थी ।
हमको जल्दी जगाने को कई तरकीब आजमाती थी ।
राखी बांधकर वो बस हमसे यही कहती थी ।
तोहफे नहीं वो बस हमारा युंही स्नेह चाहती थी ।
कांच की सी गुड़िया जिसकी बात कर रहा हूँ ।
बहुत सताती थी जिसको में याद कर रहा हूँ ।