यादगार खुशियाँँ
उस दिन रास्ते में एक शख्स़ को देखा ,
कुछ जाना पहचाना सा उसका चेहरा लगा ,
मैंने कहा आप कुछ जाने पहचाने से लगते हो ,
उसने कहा आपको मैं पहचाना नही पाया ,
आप अन्जाने से लगते हो ,
तब मैंने कहा मुझे कुछ याद आ रहा है ,
आप मेरे साथ कक्षा तीन में पढ़ते थे ,
खूब धमाचौकड़ी करते थे ,
मास्टर जी को भी बहुत तंग करते थे ,
कभी उनका छाता , कभी उनकी टोपी ,
छुपा देते थे ,
उसने कहा मुझे भी याद आ रहा है ,
आप मास्टर जी के अच्छे बच्चे थे ,
खूब पढ़ाई करते थे ,
धमाचौकड़ी से दूर रहते थे,
शरारती लड़कों की शिकायत करते थे ,
मुर्गा बने देख हम सबको चिढ़ाते हँसते थे ,
इस पर हमसे कभी कभी पिटते थे ,
फिर सब भूलकर हँसी खुशी साथ खेलते थे,
बचपन के उन दिनों की याद आती है ,
ना खाने पीने की फिक्र, ना नहाने की फिक्र ,
ना कपड़े गंदे होने की फिक्र,
खेल ही खेल ,और मौज मस्तियाँँ ,
त्यौहार , शादी, आने पर असीमित खुशियाँँ,
बड़ी लगन से पतंग और मंजा बनाना,
मिट्टी की गुल्लक में बचत का वो खजाना ,
होली का वो हुड़दंग , बरसात की वो तरंग,
दिवाली के पकवानों की वो सुगंध ,
आतिशबाजी चलाने की वो उमंग ,
लगता है ये सब खुशियाँँ कुछ रूठ सी गईं हैं ,
जिम्मेदारी आने से कुछ छूट सी गईं हैं ,
अब तो बचपन की यादों से दिल बहला लेते हैं ,
कुछ पल यादगार बनीं खुशियों में बिता लेते हैं ,