यह बरखा और याद तुम्हारी(बरसात)
दूर दिशा कजरारे बदरा
मन का चैन चुराए
दामिनी दमक रही घन माही
हिय में शूल चुभाए
तुम याद बहुत आए
तन मन भिगो रही जलधारा
शीतल हो गया आंगन द्वारा
पर अंतर्मन में यह जल भी
विरह की आग लगाए
तुम याद बहुत आए
चातक रटन लगाए घन में
कोकिल कुक रही है वन में
चटक रही हैं कलिकाएं पर
मेरे मन को न भाएँ
तुम याद बहुत आए!
धरा धानी चुनर लहराए
उमग उमग कर नाचे गाए
पर विरहन को इन बूंदों की
शीतलता ने भाएँ
तुम याद बहुत आए!
दूर देश साजन का डेरा
पलकों को आंसू ने घेरा
टप टप गिरती बरखा बूंदे
मम हृदय में शूल चुभाएँ
तुम याद बहुत आए!
बूंदों संग बहती पुरवाई
सिहर धरा ने ली अंगड़ाई
सांझ सकारे राह निहारूँ
नयन सजल हो आए
तुम याद बहुत आए!