यह धड़कन
दुनिया में केवल वहीं चीजें महफूज़ रही है
जो कभी शोर नहीं करती
मगर मेरी धड़कनें खूब आवाज़ करती है
शायद इसलिए ये उतनी ही दुखती भी है
आखिर ये इतना धड़कती क्यों है?
बार- बार क्यों शोर करती है?
ये उतना ही धड़कें
जितनी मुकम्मल हो सांसे
पर नहीं,
ये अक्सर बेचैनियां उठा देती है
ये धड़कनें,ये शोर करती है
जब भी इन्हें दुखाया जाए
ऐसा महसूस होता है
के मेरी रूह के अलावा
कोई और जान है मेरे जिस्म में
जब भी यह खूब धड़कती हैं
पागल पागल हो जाती हैं
तब सब कुछ महसूस होता है
जीवन से अंत तक का
हर सफर का एहसास होता है
लेकिन यह धड़कन हमेशा शांत रही है
खुद से अनजान रूहों के लिए
पर इनका शोर
हमेशा गूंजा हैं मेरे कानों में
इनका दर्द
हमेशा उठा करते है मेरे सीने में
जब भी इन्हें दुखाया जाए,कोंधा जाए
तब यह खूब धड़कती हैं
पागल पागल हो जाती हैं ।
-शिवम राव मणि