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2 Jun 2021 · 1 min read

यह तो कोई इंसाफ न हुआ …..

खता करे कोई और सजा किसी और को ,
यह तो कोई इंसाफ न हुआ ए परवरदिगार !

तेरे दरबार का दस्तूर कब से बदल गया ? ,
तू खामोश क्यों है बोल तो सही एक बार ।

गुनाह करे चंद कमजर्फ ,खुदगर्ज इंसान ,
सजा भुक्ते सारी कायनात क्यों हर बार ।

तेरी हसीन कुदरत को कर रहे जो बरबाद,
है तो असल में वही सजा के हकदार ।

यह जो खौफनाक बीमारी है सारे जहां में ,
तू जानता ही होगा कौन है जिम्मेदार ?

लाखों बच्चे यतीम हो गए देख तो जरा!
अब कौन उठायेगा इनकी परवरिश का भार ?

क्या इन मासूमों ने किया तेरा गुलशन तबाह ,
क्या अभागी बेवाएं,बेसहारा बुजुर्ग थे कसूरवार ?

जिन्होंने गुनाह किए उनका तो कुछ न बिगड़ा,
मगर बेकसूर आवाम पर हो रहे है बेवजह वार ।

इतनी तबाही देखकर भी इस तरह खामोश है तू ,
हम इंसान इंसाफ मांगने आए है तेरे दरबार ।

एक उम्मीद लेकर खुदा के पहलू में आए है ,
फैसला उसपर है”अनु” इंकार करेगा या इकरार।

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