यही सोचकर आँखें मूँद लेता हूँ कि.. कोई थी अपनी जों मुझे अपना
यही सोचकर आँखें मूँद लेता हूँ कि.. कोई थी अपनी जों मुझे अपना कहा करती थी,
खुद के ख्यालों में मुझे पाकर सजती -सवरती थी,
उसकी आँखों में तड़प इस बात की होती थी..
जाने कब मुझसे मुलाक़ात होगी, जाने कब मेरा दीदार होगा,
वैसे तो उसका कोई मुक़ाबला नहीं था… पर वो मुझसे कभी उलझती नहीं थी,
उसकी एक मुस्कुराहट से मेरा दिन बन जाता था,
उसकी एक मुलाक़ात से मेरे सपनो में जान आ जाती थी,
मैं बहकता था तो उसे देखकर,
मैं सवरता था तो उसे सोचकर,
मैं लिखता था तो सिर्फ उसे,
मेरी ज़िन्दगी की तमाम खुशियाँ थी तो सिर्फ उसी से,
अब मुझसे खो चुका है उसका वज़ूद और वो गुज़र चुकी है मेरी जिंदगी से,
अब कुछ ना बचा उसकी यादों के बिना,
हमारे झूठे वादों के बिना,
उसकी मुस्कुराहटों के बिना,
उसकी आहटों के बिना,
और हमारी शिकायतों के बिना..!!
❤️ Love Ravi ❤️