यद्यपि प्यार करो कितना ही…
यद्यपि प्यार करो कितना ही,
इस जीवन की भागदौड़ में,
कुछ ही पल के लिए सही,
पर प्रिय को भुलाना ही पड़ता है।
यद्यपि प्यार करो कितना ही…
मन की इच्छा मार – मार कर,
प्रियजन की खुशियों की खातिर,
जीती बाजी हार – हार कर,
मन को समझाना ही पड़ता है।
यद्यपि प्यार करो कितना ही…
सपनों के सागर में उतर कर,
खूब लगाओ गोते गहरे,
पर यथार्थ की तेज धूप में,
खुद को निकलना ही पड़ता है।
यद्यपि प्यार करो कितना ही…
यूँ तो सदां समय से पहले,
खबर बहारों की आ जाती,
पर पतझड़ को भी तो एक दिन
रस्ता देना ही पड़ता है।
यद्यपि प्यार करो कितना ही…
गाओ गीत मिलन के ही कितने
प्रातः की मधुरिम बेला में,
पर संध्या बेला में एक दिन,
गीत विरह गाना ही पड़ता है ।
यद्यपि प्यार करो कितना ही…
✍ – सुनील सुमन