यथार्थ
अंतर्मन में व्याप्त यह तिमिर कैसा है ?
आशाएँ एवं अभिलाषाएँ मृत प्रायः हैं ।
हृदय स्पंदन हीन जड़ होता जा रहा है ।
वर्तमान स्वप्न मे विचरण प्रतीत हो रहा है।
जीवन निरर्थक दिग्भ्रमित सा आभास लिए हुए हैं।
नीरव वातावरण में अंतःकरण में ये कैसा कोलाहल है ?
चेतना विलुप्त हो रही है , अस्तित्व प्रश्न चिन्ह बना हुआ है ।
जागृत मनस चेष्टा व्यर्थ सिद्ध हो चुकी है ।
त्रासदी ने मृत्यु द्वार पर ला खड़ा किया है।
ये मानव कर्मफल हैं , जिसने नियति को निष्ठुर बना दिया है।