यथार्थ से दूर का नाता
वह मुझसे घृणा रखते हुए
और, उसे जज्ब कर बाहरी तौर पर
प्यार का इजहार ऐसे करता है
जैसे कि मेरा मान भी उसने
अपनों में अटा रखा हो!
जैसे जातिमान पर रहता ही नहीं हो वह
कलुष बीच प्यार का पनपना सम्भव होता है
असंभव है मग़र प्यार में कलुष का पलना
कलुष और प्यार की
एक साथ चलने की प्रतीति का
यथार्थ से दूर का ही नाता होना चाहिए!