यथार्थ रूप भाग 4
किसी से घृणा का भाव
सदैव उस मार्ग की ओर ले जाता है
जहाँ एक छोटी, परन्तु तीक्ष्ण किरण
हमारे उस विचार को उजागर करती है
जो क्रोध में आकर उपज तो गया है,
लेकिन वास्तविकता के सरीखी है भी या नहीं,
यह मालूम नहीं होता।
लेकिन धीरे-धीरे हमारी नासमझी ही
उस छोटी-सी किरण से
हमें उस अग्नि की ओर ले जाती है
जहाँ दूसरों के प्रति मन में उठ रहे अल्हड़ विचार
सामने जल रही ज्वाला के समान
धधकने लगते है।
तब एक छोटा-सा कटाक्ष भी
भीतर घूंट रहे सभी मंतव्यों को
वर्तमान की मेदिनी पर ला पटकता है
जिधर अपनों का भी कथित हरेक शब्द,
उनकी हरेक हलचल,
क्रोध की लपटों को हवा देकर
बड़े ही तल्लीन से सहेजी हुई
धैर्य की दीवार को ढहा देती हैं,
और प्रेम का सान्निध्य,
चाहें वो किसी का भी हो,
शनैः शनै: राख हो चला जाता है।