यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते
मुझे गर्व है भारत की संस्कृति पर
‘यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते’ की धरती पर
मेरी संस्कृति सीखाती है आदर माँ का
पर फिर क्यों मूर्ति रूप में
पूजी जाती है माँ केवल
क्यों जन्मदायिनी माँ उपेक्षित है?
और एक वय के बाद मूर्तिवत
बैठे रहने को अभिशप्त है|
मेरी धरती पर प्रत्येक षड्मास में
नौ दिन नौ रात होते हैं,
स्त्री के विभिन्न रूपों की उपासना के|
परन्तु यही उपासक इसके उपरान्त क्यों भूल जाते हैं स्त्री की महत्ता
पूज्य स्त्री क्यों बन जाती है
कभी दया,कभी उपहास का पात्र
मेरी इस संस्कृतिशीला धरती पर
नवरात्र का पारायण
कन्या पूजन से होता है|
बड़े ही भाव विवह्ल होकर
कन्या पूजी जाती हैं,जिंवायी जाती है,
आमंत्रित की जाती हैं देवी के समान
लेकिन फिर….
नैसर्गिक अवतरण भी उनका बाधित किया जाता है,
ताने,उलाहने और बंदिशों में उन्हें रखा जाता है,
और एक बोझ की तरह ढोते हैं अभिभावक उन्हें|
मेरी संस्कृतिशीला धरती पर मुझे गर्व है और अफसोस भी कि…
यहाँ मातृपूजन देवीपूजन अथवा कन्यापूजन के दिवस षड्मास में केवल नौ ही क्यों हैं?
क्या ऐसी महान संस्कृति के धारकों को इन नौ दिनों को वर्ष पर्यन्त की सीमा का विस्तार नहीं दे देना चाहिए
ताकि मेरी तरह सम्पूर्ण विश्व भी मेरी धरती पर गर्व करे|
✍हेमा तिवारी भट्ट✍