*यक्ष प्रश्न*
दरिंदगी की हो गई है पराकाष्ठा –
हर रोज़ हो रहा है,
दिल दहला देने वाला
कोई न कोई हादसा –
इंसानों के वेश में नर-पिशाच हैं घूम रहे –
अब ऐसे माहौल में कैसे
बहन-बेटी महफूज़ रहे? –
एक निर्भया कांड ने जब
सात वर्ष पूर्व
इस देश की आत्मा को झकझोरा था –
तब सत्ता के ठेकेदारों ने
कानून-व्यवस्था सुधारने का
पीटा ख़ूब ढिंढोरा था –
फिर उस बेटी का मुज़रिम
आज तलक क्यों ज़िंदा है? –
क्या इसपर हमारा अंधा कानून
थोड़ा भी शर्मिंदा है? –
और तो और, अब आए दिन
दुष्कर्म और हत्या की घटना
जघन्य से जघन्यतम होती जा रही है –
बिना किसी अपराध के नारी,
नारी के रूप में जन्म लेने की
सज़ा बख़ूबी पा रही है –
मंत्री हो, नेता हो या पुलिस अधिकारी –
कोई नहीं स्वीकार है करता
अपनी अकर्मण्यता,
अपनी ज़िम्मेदारी –
संवेदनहीनता की मिसाल देखिए-
सब एक दूसरे पर आरोपों के
बर्छी-भाले फेंक रहे हैं –
और इन नाज़ुक मौकों पर भी
स्वार्थ से तपते तवे पर
राजनीति की रोटी सेंक रहे हैं –
लम्बी लचर न्याय व्यवस्था से
जब कोई उम्मीद नहीं है –
तब तुरंत सज़ा देने की ख़ातिर
एनकाउंटर क्या नहीं सही है? –
हर बच्ची, किशोरी, हर महिला को
डर डरकर कबतक जीना होगा? –
अपमान और यातना का हलाहल
इस देश में कब तक पीना होगा? –
इतना ही नहीं
जब जनता इन सबके विरोध में
धरना, प्रदर्शन करती है
तो पुलिस बर्बरता से उनपर ही
लाठियाँ बरसाती है –
पानी की बौछार और आँसू गैस चलाती है –
आज़ादी के सात दशक के बाद भी
आधी आबादी को न्याय नहीं मिल पाता है –
ऐसे में क्या शासन तंत्र
हमारे संविधान की
धज्जियाँ नहीं उड़ाता है? –
मनुस्मृति में कहा गया था-
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ –
और उसी नारी का इस युग में
मान-सम्मान है लापता –
वोट लिया है सबसे तूने
तो संरक्षण देगा कौन? –
स्वर्ग से आती चीखें सुनकर
कबतक तू बैठेगा मौन?