#यक्ष-प्रश्न
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~ #यक्ष प्रश्न ~
हे यक्ष तेरे प्रश्न कहां हैं
अब काहे तू मौन है
रुधिर नहाया श्वान लपलपा रहा
मानव-अस्थि चबैन जिसका चबौन है
पाण्डुपुत्र स्वजन नहीं थे
यह दानव तेरा कौन है
ह़स्तिनापुर की ढब वही है
वही जुलाहे वही ताने-बाने हैं
विधर्मी मन के मीत हुए अब
सुधर्मी अब बेगाने हैं
तब के राजा अंधे थे
अब के राजा काने हैं
योगेश्वर कृष्ण से क्या कहें
योगी अब व्यापारी है
जन-मन की इच्छाओं पर
विश्वविजय की लालसा भारी है
गीता-जयन्ती मोक्षदा एकादशी
दिवस योग का तपती दुपहरी है
अब अभिमन्यु की हत्या पर
कोई अर्जुन शपथ नहीं लेता
सबसे मारक अस्त्र निंदना
बिन रीढ़ का जीव नहीं चेता
सिर कटा रहा मिमिया रहा
नरपिशाच को दण्ड नहीं देता
माँ-बोली बोले अब लाज लगे
नीटी को नीति बना दिया
अगड़म-बगड़म उल्टा-पुल्टा करके
भीम झुनझुना थमा दिया
वर्षा से वर्ष का तोड़ के नाता
दासों का पंथ चला दिया
हे यक्ष तुझसे कैसा उलाहना
सब समय समय का खेल है
द्वापर का वो प्रहर अंतिम
कलियुग की अब रेलमपेल है
बौनों की इस नगरी में
बौनों का घालमेल है
आस-निरास के झूले में
इच्छा के फूल खिला देंगे
गंगा गाय और गायत्री
मिलकर पार लगा देंगे
तुम न बिके जो हम न बिके
लुटेरे मार भगा देंगे
फिर भी शेष इक यक्ष-प्रश्न है
कौन जीता हारा कौन
लूला-लंगड़ा क्यों मेरा भाग्यविधाता
शेष सारे प्रश्न हैं गौण
दसों दिशाएं कूक रही हैं
पसरा बिखरा निर्लज्ज मौन !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२