जात-पांत और ब्राह्मण / डा. अम्बेडकर
“ब्राह्मण राजनीतिक तथा आर्थिक सुधार के मामलों के आंदोलन में सदैव अग्रसर रहते हैं, लेकिन जात-पांत के बंधन को तोड़ने के लिए बनाई गई सेना में वे शिविर अनुयाई (कैंप फॉलोअर्स) के रूप में भी नहीं पाए जाते।
क्या ऐसी आशा की जा सकती है कि भविष्य में इस मामले में ब्राह्मण लोग नेतृत्व करेंगे? मैं कहता हूं, नहीं। आप पूछ सकते हैं क्यों?
… आप यह भी तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं कि ब्राह्मण दो प्रकार के हैं। एक, धर्मनिरपेक्ष ब्राह्मण और दूसरे, पुरोहित ब्राह्मण। यदि पुरोहित ब्राह्मण जात-पांत समाप्त करने वाले लोगों की तरफ से हथियार नहीं उठाता है तो धर्मनिरपेक्ष ब्राह्मण उठाएगा? नहीं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि यह सारी बातें हैं ऊपर ऊपर बहुत ही विश्वसनीय लगत भी सकती हैं लेकिन इन सब बातों में हम यह भूल गए हैं कि यदि जाति व्यवस्था समाप्त हो जाती है तो ब्राह्मण जाति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए क्या यह आशा करना उचित है कि ब्राह्मण लोग ऐसे आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए सहमत होंगे जिसके परिणाम स्वरूप ब्राह्मण जाति की शक्ति और सम्मान नष्ट हो जाएगा? क्या धर्मनिरपेक्ष ब्राह्मणों से यह आशा करना उचित होगा कि वह पुरोहित ब्राह्मणों के विरुद्ध किए गए आंदोलन में भाग लेंगे?
मेरे निर्णय के अनुसार धर्मनिरपेक्ष ब्राह्मणों और पुरोहित ब्राह्मणों में भेद करना व्यर्थ है। वह दोनों आपस में रिश्तेदार हैं। वे एक शरीर की दो भुजाएं हैं। एक ब्राह्मण दूसरे ब्राह्मण का अस्तित्व बनाए रखने हेतु लड़ने के लिए बाध्य है।”