यक्षिणी- 22
निबरा की घरवाली
गांवभर के मर्दों की
भौजाई होती है
तुम्हारे रूप रस गंध से चिपके उस कवि
और तुम्हारे वक्ष-अक्ष पर
टिके कवि गिरोह के लोगों की मार्फ़त भी
यह जाना न यक्षिणी?
निबरा की घरवाली
गांवभर के मर्दों की
भौजाई होती है
तुम्हारे रूप रस गंध से चिपके उस कवि
और तुम्हारे वक्ष-अक्ष पर
टिके कवि गिरोह के लोगों की मार्फ़त भी
यह जाना न यक्षिणी?