यकीन
वह बुजुर्ग सरकारी दफ्तर में राशन कार्ड बनवाने गया। वहाँ के लिपिक ने आवश्यक जानकारी भरकर फार्म में उनका दस्तखत कराया, फिर बोला- ठीक है दो दिन बाद ले जाना।
बाबू साहब मेरा काम तो हो जाएगा ना- बुजुर्ग बोला।
क्यों नहीं? हॉं,,, हॉं, जरूर हो जाएगा- उस लिपिक ने कहा। बावजूद वह व्यक्ति बैठा रहा। वह कुछ देर बाद आकर फिर बोला- तो मैं दो दिन बाद आऊँ?
अरे आप बार-बार ऐसा क्यों कह रहे हो? क्या मेरी बात पर आपको यकीन नहीं हो रहा?
उस व्यक्ति ने कहा- बाबू साहब, हमें पूरा यकीन है। बस आप 100 रुपये का यह नोट रख लीजिए।
मेरी प्रकाशित कृति :
मन की आँखें (दलहा, भाग- 1) से,,,।
मेरी लघुकथाएँ “दलहा भाग 1-7” में संकलित है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
टैलेंट आइकॉन – 2022-23