यकीन नहीं होता
यकीन नहीं होता
बादल से खून बरसता है
चिराग नहीं घर जलता है
जहर हर दिल में बसता है
कफन बांध इंसान चलता है
मोहब्बत में धोखा मिलता है
इतना जो रंग बदलता है
गिरगिट का मामा लगता है
गमले में लगा बरगद से भिड़ता है
बाजार जिंस नहीं जमीर का लगता है
सूरज से सियासी रंग निकलता है
वतन की अस्मिता है जो लुटता है
आदमी आदमी का शिकार करता है
डा राजीव “सागर”