मौसिकी विश्वास की
डॉ अरुण कुमार शास्त्री , एक अबोध बालक, अरुण अतृप्त
दिल का हाल कहना था
मुझे तेरे साथ ही रहना था
बमुश्किल न हो सका क्या हुआ
मुझे इश्क का इज़हार करना था
ज़लज़ला आया सब कुछ
बर्बाद कर गया
सकूँ से थी चल रही जिंदगी
सब कुछ उजड़ गया
साहिल ने साहिल पे ला के मारा
थी उम्मीद की शिद्द्त जिनसे ख़ुदाया
मिली चोट उनसे जिन्होंने
दिया था सहारा
यक़ी अब न आएगा इखलॉक
डगमगायेगा, कश्ती में रह कर भी
जिया मेरा चैन कैसे पायेगा
दिल का हाल कहना था
मुझे तेरे साथ ही रहना था
बमुश्किल न हो सका क्या हुआ
मुझे इश्क का इज़हार करना था
तुम्हें मोहब्बत है याके नही है
आदतों से लगता है कुछ कुछ
मगर हमको यक़ी बिल्कुल नही है
अब ऐसी सूरत में ये कौन बतलायेगा
दिल का हाल कहना था
मुझे तेरे साथ ही रहना था
बमुश्किल न हो सका क्या हुआ
मुझे इश्क का इज़हार करना था