मौसम – दीपक नीलपदम्
कहता हूँ हाथ में थमी कलम ने जो कहा,
कानों में गुनगुना के जब, पवन ने कुछ कहा,
सितारा टिमटिमाया और इशारा कुछ किया,
ऐसा लगा था श्रृष्टि ने हमारा कुछ किया ।
कागज़ की किश्तियाँ बनाके बैठ गए हम,
बारिश उसे पसंद है ये जब पता चला,
सब मौसमों ने राह ली थी उस गली की पर,
बारिश के मौसमों को वो पता नहीं मिला ।
सब मौसमों के नखरे सहन हमने कर लिए,
मौसम उसे पसंद था बस वो नहीं खिला,
बारिश हुई थी एक दिन उस गली में पर,
उससे ही पहले उस गली से मैं निकल लिया ।
(c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “