मौसम बेईमान है – प्रेम रस
रात नशे में है या ये समा ही जवान है
तुम हो मैं हूं और मौसम बेईमान है।
ढूंढ रहे है हम अपना दिल तेरे दिल के इर्द गिर्द,
कोई नहीं इशारा के ये दिल अब कहां है।
तुम हो मैं हूं और मौसम बेईमान है।
है सूरत कोई संगमरमर की मूरत
दरस कोई दिव्य ही यहां है
तुम हो मैं हूं और मौसम बेईमान है।
तरसे बरसते या बरसते तरसते
इस भवरें को पराग कण नसीब ही कहां है
तुम हो मैं हूं और मौसम बेईमान है।
संभलना इसे है बहकने लगा पर
इत्र सा कोई महकने लगा है
प्रेम के यज्ञ का हो सफल प्रयोजन
मगर मेरी उतनी प्रतीभा कहां है
तुम हो मैं हूं और मौसम बेईमान है।
सितारें भी तेरी तलब में है बैठे
दीदार को तेरी ये चांदनी यहां है
तुम हो तो रोशन है गुलिस्ता हमारा
तेरे बगैर कोई खुशियां कहां है
तुम हो मैं हूं और मौसम बेईमान है।
बेईमान मौसम से बेईमानी मेरी
रोके से भी प्रेम रुकता कहां है
है प्रीत का सागर भी ये दिल तुम्हारा
सागर से मोती चुरालूं जो कह दो
रोके से ‘अमित’ रुका ही कहां है
– अमित पाठक शाकद्वीपी