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9 Mar 2020 · 1 min read

” मौसम की मनुहार है ” !!

रंग गुलाल उड़ा है ऐसा ,
मदमाती बयार है !
सभी रंग में डूबे डूबे ,
रंगों की बौछार है !!

पुलक रहे हैं गात सलोने ,
भीगा भीगा तन मन है !
नज़रों की तीरंदाजी है ,
अधरों पर भी लरजन है !
रंग बिखेरे टेसू ऐसे ,
मौसम की मनुहार है !!

उम्र के टूट गये हैं बंधन ,
मस्ती में सारे जन हैं !
इक सुरूर में भीगे सब हैं ,
भेद नहीं कोई मन है !
अलबेले से गीतों की भी ,
पड़ती रहती मार है !!

कहीं राग है , कहीं भाग है ,
मचती है कहीं रार भी !
कहीं मची है छेड़छाड़ तो ,
उपजे है कहीं प्यार भी !
सभी रंग बिखरे हैं धरा पर ,
रंगों की भरमार है !!

खिले रंग चेहरों पर अनगिन ,
कोई है परहेज करे !
पलता है उत्साह , उमंग तो ,
कहीं वेदना भी उभरे !
फाग नचाये गली गली है ,
झूमे यह संसार है !!

स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )

Language: Hindi
Tag: गीत
2 Likes · 1 Comment · 324 Views
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