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9 Jan 2017 · 1 min read

मौन

मौन
✍✍

पाषाण सी यह देह तुम्हारी
खण्डों में बँटी लगती है
हालंकि तुम कुछ न कहती
पर देह भाषा बोलती है

बिछा हुआ जो मौन गहनतम
सुदूर सागर की गहराई नापता
प्रेमी प्रिय के मन मुकुर को बेध
अन्तस् की अथाह थाह लाता

नि:शब्द हो नख से शिख तक
फिर भी बहुत कुछ कहती हो
न कहना तुम्हारा कुछ भी ही
वड़वाग्नि सा दहकाता मुझको

साफ सलोना सा रूप है तुम्हारा
मन पौरूष को भड़का देता है
भावनाओं के अंकुश से भी
क्षण भर को बाज नहीं आता

किसी रूपसि से कम नहीं तुम
मौन तेरा महाकाव्य सा लगता
छुई अनछुई कहानी लिखती
आदि से अन्त न पता लगता

फिर भी जग में फैलाती माया
छलना सी छलती हो जग को
नहीं कम किसी तांत्रिक से कम
तन्त्रविद्या को तुम पढ़ती ही हो

डॉ मधु त्रिवेदी

Language: Hindi
74 Likes · 349 Views
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