मौन ही जब अर्थ देने लगे
मौन ही जब अर्थ देने लगे तो शब्द सारे ही अकिंचित हो जाते है
व्यथित मन जब द्रवित हो कुछ कहने चले
अस्रूओ की झडी जब चछु को धुंधला करे
तो शब्द सारे रूंध गले मे अटक कर खो जाते है
मौन ही ….
नयन ही करने लगे जब नयनो से बाते
धडकन ही सुनने लगे धडकनो की बाते
मौन ही जब मुखर हेकर प्रीत का पथ रोक ले
तो शब्द सारे ही मर्यादित हो जाते है
तो सचमुच शब्द सारे ही अकिंचित हो जाते है