मौन – लीला
यह सच है
लिपि और भाषा का विकास हुए
हो गई हैं सदियां
फिर भी,
मौन
की प्रासंगिकता
रत्ती भर
न हुई कम,
मौन का साम्राज्य
बढ़ता ही जा रहा रोज
लेकर अपने लाव- लश्कर,
मौन तब भी था
मौन अब भी है
कल भी रहेगा यह
तुम्हारे संवाद में भी
लहराता है अपनी ‘ विजय – पताका ‘
मौन क्या नहीं है?
स्त्रियोचित लज्जा सुलभ मौन
सहमति है,
दो निकटस्थ के बीच का
परस्पर मौन
रिश्तों में दरार है
बचकर रहिएं
इस मौन से
आपके घर भी पसारने पांव
यह हमेशा तैयार हैं